BHOPAL. वोटिंग के बाद अब सबकी नजरें टिकी हैं चुनाव के नतीजों पर। इसमें करीब 13 दिन का वक्त है। प्रदेश का मुकद्दर तो तय हो जाएगा साथ ही कुछ नेताओं का भविष्य भी तय हो जाएगा। ये चुनाव मध्यप्रदेश की सत्ता में बड़े बदलाव लेकर आने वाला है। पार्टी कौन सी राज करेगी ये फिलहाल कहा नहीं जा सकता, लेकिन ये तकरीबन तय है कि सीएम का चेहरा नया होगा। इस एक फैसले के साथ ही बहुत से ऐसे चेहरे हैं जो सियासी फलक से ओझल हो जाएंगे या फिर किसी नई जिम्मेदारी के साथ नजर आएंगे। किसे मजबूरन वीआरएस लेना होगा ?, कौन रिटायर होगा? कौन नई जिम्मेदारी के साथ सामने आएगा ये कुछ ही दिनों में तय हो जाएगा।
क्या मध्यप्रदेश में शिवराज युग का अंत होगा
2018 के बाद से मध्यप्रदेश की सियासत लगातार करवट ले रही है। 15 ही महीने में बड़े दलबदल के साथ सत्ता पलट हुई। ये भी प्रदेश के सियासी इतिहास का नया अध्याय था। अब सुनने में आता है कि बीजेपी जीती तो भी शिवराज सिंह चौहान को कुर्सी नहीं मिलेगी। ये मध्यप्रदेश में शिवराज युग का अंत होगा। इस युग के साथ ही बहुत से ऐसे चेहरे हैं जो एक्टिव पॉलिटिक्स से विदा हो जाएंगे। कुछ चेहरों के आगे उम्र रोड़ा बनकर खड़ी होगी तो कुछ चेहरों का सियासी करियर इस बार के नतीजों पर निर्भर करेगा। 3 दिसंबर का दिन न सिर्फ हार जीत के लिहाज से महत्वपूर्ण होगा, बल्कि कई नेताओं के सियासी सफर की नई मंजिल या अंजाम भी तय करेगा।
बीजेपी का ऑफबीट स्टाइल लीडर्स को प्रमोशन दिलाएगा या डिमोशन देगा
इस चुनाव में जीत के लिए दोनों पार्टियों ने बहुत कुछ दांव पर लगाया है। बीजेपी ने अप्रत्याशित रणनीति अपनाई तो कांग्रेस के दो नेताओं ने अपना सारा तजुर्बा झोंक दिया। बीजेपी का ऑफबीट स्टाइल बहुत से लीडर्स को प्रमोशन दिलाएगा या डिमोशन देगा। जो बहुत अनलकी हुआ उसका सियासी करियर बुरी तरह चौपट हो सकता है। कुछ लीडर्स ऐसे भी हो सकते हैं जिनका फैसला अगले चुनाव तक के लिए मुल्तवी हो जाए।
कुछ राजनेता ऐसे भी हैं जो पूरी तरह से पक चुके होंगे
मध्यप्रदेश के बीते 20 साल की राजनीति के बाद अब प्रदेश में मतदाताओं को नई पौध तैयार हो चुकी है। ये वो पीढ़ी है जिसने मतदान पहली बार दिया है और सियासी जानकारी के नाम पर सिर्फ बीजेपी युग के देखा और समझा है। इस बार पहले मतदान के बाद जब ये पीढ़ी पांच साल बाद मतदान करेगी तो युवा मतदाता की जगह एक मैच्योर मतदाता के रूप में वोटिंग करेगी। इस पीढ़ी के साथ ही कुछ राजनेता भी ऐसे हैं जो पूरी तरह से पक चुके होंगे। 3 दिसंबर के नतीजे ये तय करेंगे कि ये युवा पीढ़ी मौजूदा नामों में से कितने नामों को अगले चुनाव तक मैदान में देख सकेगी। क्योंकि बहुत से राजनेता कुछ अलग ही मंसब पर नजर आएंगे। बात शुरू करें कांग्रेस से तो शायद सियासत की पूरी पीढ़ी बदल चुकी होगी।
इन नेताओं का सियासी करियर भी नजदीक...
- कमलनाथ की उम्र 77 साल हो चुकी है। 2020 के तख्ता पलट के बाद वो इस 2023 तक पूरी ऊर्जा से भिड़े रहे। इस बार की हार शायद प्रदेश में उनके सियासी करियर का अंत साबित हो सकती है।
- दिग्विजय सिंह 76 साल के हो चुके हैं। कांग्रेस की वापसी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। इस बार की हार शायद बतौर संगठक उन्हें कमजोर बना दे।
- लहार वाले गोविंद सिंह 73, सज्जन सिंह वर्मा 71 और अजय सिंह 68 साल के हो चुके हैं। कांग्रेस जीती तो शायद प्रमोशन पा जाएं और विधायक से मंत्री का ओहदा मिल जाए। पार्टी हारी, लेकिन खुद जीते तो कम से कम विधायक तो रहेंगे ही।
- इन नेताओं के अलावा फिलहाल कांग्रेस के पास जयवर्धन सिंह, जीतू पटवारी, कुणाल चौधरी, सचिन यादव जैसे युवा नेताओं की भी कमी नहीं है। उम्मीद की जा सकती है जीतने पर इन्हें कुछ बेहतर मौके मिलें।
बीजेपी में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जिनके लिए ये चुनाव बड़े बदलाव लेकर आएगा। कुछ रिटायर होंगे, कुछ डिमोट होंगे तो कुछ को मेहनत का सिला मिल सकता है और कुछ के लिए पार्टी का फैसला जबरन वीआरएस भी साबित हो सकता है।
बीजेपी के उम्रदराज नेता...
- शिवराज सिंह चौहान 64 साल के हो चुके हैं। चार बार सीएम रहे शिवराज के रिपीट होने की संभावना कम है। जीतने पर हो सकता है वो मंत्रीपद पर दिखें या केंद्र की राजनीति का हिस्सा बनें।
- 60 पार के तीन सांसद नरेंद्र सिंह तोमर (66), प्रहलाद पटेल (63) और फग्गन सिंह कुलस्ते (64) को पार्टी ने विधानसभा में उतारा। जीते तो प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते कुछ बेहतर ओहदे पर दिख सकते हैं।
- सरकार बनी तो प्रमोशन के रूप में प्रहलाद पटेल को सीएम कुर्सी भी मिल सकती है।
- पार्टी हारी खुद जीते तो परफोर्मेंस के आधार पर पार्टी नई जिम्मेदारी दे सकती है।
- बेटे की सीडी वायरल होने के बाद नरेंद्र सिंह तोमर के भविष्य पर बड़ा प्रश्न चिंह लग चुका है।
- 67 के कैलाश विजयवर्गीय की जीत न सिर्फ उनका, बल्कि उनके बेटे आकाश विजयवर्गीय का भी सियासी भविष्य तय करेगी।
- गोपाल भार्गव की जीत तय हो सकती है, लेकिन सरकार बनने पर मंत्रिपद मिलना इस बार उम्र के चलते मुश्किल हो सकता है।
- रीति पाठक के लिए ये चुनाव बड़ी चुनौती है। अगर हारीं तो महज 46 साल की उम्र में वो मजबूरन वीआरएस लेने पर बाध्य हो सकती हैं।
बीजेपी की हार होती है तो तमाम हारने वाले प्रत्याशियों के लिए ये चुनाव रिटायरमेंट साबित हो सकता है। जीतने वाले प्रत्याशियों को उनके कॉन्ट्रिब्यूशन के अनुसार संगठन में अहम पद मिल सकता है।
सिंधिया की राजनीति के लिए भी उतना ही अहम है ये चुनाव
ये चुनाव बीजेपी के सांसद से प्रत्याशी बने लीडर्स और दूसरे नेताओं के लिए जितना निर्णायक है ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति के लिए भी उतना ही अहम है। वैसे तो उनकी उम्र 52 साल ही है, लेकिन बीजेपी में जाने के बाद पूरी 230 सीटों पर चुनाव में अपना जलवा दिखाने की ये उनकी पहली पारी है। पार्टी जीती तो यहां वो पोस्टर बॉय तो नहीं बन सकेंगे, लेकिन अपने समर्थक और ग्वालियर चंबल में बीजेपी की वापसी करवाकर जरूर आलाकमान की नजरों में बेहतर साबित हो सकते हैं। ऐसा न होने पर उनके प्रभाव पर भी असर जरूर पड़ेगा। इस चुनाव में हर दल के बहुत से नेताओं का सियासी भविष्य दांव पर लगा है।
वोटर्स की नई पौध के साथ मध्यप्रदेश में भी सियासत का नया चैप्टर शुरू होगा ही। कुछ बदलाव और कुछ पुराने चेहरों के साथ प्रदेश की राजनीति नई रफ्तार पकड़ेगी। इस रफ्तार पर सवार होने का मौका किस सियासी सूरमा को मिलेगा और कौन सा धुरंधर थमा रह जाएगा। ये जानने के लिए बस तेरह दिन का इंतजार ही बाकी है।